
बांधवगढ़ कोर जोन स्थिति पतौर गांव में कोरोना त्रासदी को अवसर में तब्दील कर नई पीढ़ी को शिक्षित करने सकारात्मक परिवर्तन किया गया है। शिक्षा विभाग द्वारा हाई स्कूल का संचालन वर्षों से हो रहा है। जंगल के बीच बाघों के रहवास के चलते बच्चों को अत्याधुनिक शैक्षिक सुविधाएं नहीं मिल पा रही थीं। छात्र संख्या की कमी को दूर करने के लिए शिक्षकों ने कुछ करने की ठानी। स्थानीय लोगों ने सहयोग की पहल की। लगभग 8.33 लाख रुपए खर्च कर भवन से लेकर प्रायोगिक लैब, डिजिटल तकनीक का इंतजाम कर डाला। अब पतौर गांव का यह स्कूल शैक्षिक सुविधाओं के मामले में शहर की निजी स्कूलों कों भी मात दे रहा है। अभिभावकों का रूझान भी शिक्षा के प्रति बढ़ा है। अब स्कूल में दो डिजिटल प्रोजेक्टर, दो लैपटाप, दो डिजिटल माइक्रोस्कोप, 16 डेस्क टेबिल, एक सूक्ष्मदर्शी यंत्र, 10 सीलिंग फैन की सुविधा उपलब्ध है।
जिला मुख्यालय से लगभग 40 किमी. दूर पतौर गांव बसा है। बांधवगढ़ टाईगर रिजर्व अंतर्गत यह कोर जोन में आता है। कोर अर्थात् जहां बाघों का घर यानि गुफाएं रहती हैं। यहां गोड व बैगा समुदाय बाहुल्य इलाके की आबादी लगभग एक हजार है। क्षेत्र की वन्यजीव खूबसूरती कुछ सुविधा के मामले में ग्रामीणों के लिए अड़चने भी बन रही थी। जैसे बाघ आदि का मूवमेंट होने पर आवागमन का समय नीयत रहता है। अधोसंरचना के निर्माण भी वन्यजीव संरक्षा के तहत ही होते हैं। हाई स्कूल के पीछे ही जंगल में एक बड़ा सा पहाड़ है। अक्सर दिन ढलने के बाद रात को यहां बाघों की दहाड़ भी सुनाई देती है।
कोरोना काल में चला काम,अब हो रही पढ़ाई
ग्रामीणों को शिक्षा की अत्याधुनिक सुविधा दिलाने में दानकर्ता हासिम नादिर तैय्यब ने अहम भूमिका निभाई। संस्था प्रभारी से प्राप्त जानकारी अनुसार हैदराबाद निवासी हासिम का एक निवास स्थल पतौर गांव में बना है। सहप्रभारी अजय कुमार शुक्ला ने स्कूल की अड़चने उनसे साझा की थी। हासिम एक दानकर्ता संस्था के माध्यम से अपने अन्य साथी व सिंगापुर में अपनी पत्नी आदि के साथ गरीब क्षेत्र में शिक्षा के लिए दान करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने संस्था प्रभारी गंगा प्रसाद साहू से पूरा प्रोजेक्ट तैयार करने को कहा। जिससे शैक्षणिक कमी को अविलंब दूर किया जा सके। अप्रैल 2020 में वांछित संसाधनों की सूची बनाई गई। जून 2020 से काम चालू हुआ। अभी तक खेल मैदान, कमरों की छपाई, लाइट फिटिंग, शौचालयों को रख-रखाव, टेबिल पंखे, प्रयोगशाला उपकरण सहित आठ लाख रुपए के साजो सामान प्राप्त हो चुके हैं। संस्था प्रभारी जीपी साहू का कहना है अब अभिभावक भी बच्चों को भेजने लगे हैं। डिजिटल कक्षाएं भी संचालित हो रही है। बच्चे भी स्कूल नियमित रूप से पहुंचकर अध्यापन कार्य कर रहे है। जनसहयोग से प्राप्त हुए संसाधनों से हमें काफी मदद मिली है। सरपंच ने भी ग्राम पंचायत के माध्यम से राशि व मदद की पहल की है।
सभी कमरों में पहुंची गई बिजली
स्कूल परिसर में परिसर से लेकर कक्षा व अध्यापन कार्य में मूलचूक परिवर्तन हो चुका है। सर्वाधिक महत्वपूर्ण सुरक्षा की दीवाल थी। ढाई सौ फीट लंबी क्षतिग्रस्त दीवाल को सुधारा गया है। पानी की नियमित आपूर्ति के लिए हैंडपंप की जगह सबमर्शियल स्थापित किया गया है। सभी कमरों में लाइट फिटिंग का विस्तार हुआ। पहले बिजली केवल आफिस तक थी। तीन शौचालयों का कायाकल्प होने के साथ ही हाथ धुलने के लिए पुराने हैंडवाश का विस्तार भी किया गया है। दो एकड़ में फैले लंबे चौड़े उबड़ खाबड़ जमीन को खेल मैदान का स्वरूप देने हेतु समतलीकरण, विद्यालय भवन व कक्षों की नए सिरे से पुताई व रंगाई की गई है।
पतौर हाई स्कूल में कक्षा एक से कक्षा 10 तक की कक्षाएं संचालित होती हैं। एक से पांच तक 39 बच्चे, 6-8 में 43 व कक्षा 9- 10 वीं में 68 बच्चें पंजीकृत है। 18 दिसंबर से शासन के निर्देशानुसार हाई स्कूल की नियमित कक्षाएं लग रही हैं। संसाधन के मामले में माध्यमिक शिक्षा के लिए तीन व प्राथमिक को पांच कमरों का आवंटन है। इसी में एक आफिस व लैब भी साथ है।
कलेक्टर व सीईओ के मार्गदर्शन में पतौर विद्यालय का कायाकल्प स्थानीय जनसहयोग से हुआ है। शासन स्तर से भी वहां रख-रखाव कार्य कराए जा रहे हैं। अत्याधुनिक सुविधा के बाद अब वहां स्मार्ट क्लासेस भी लग रही हैं।
प्रस्तुकर्ता
गजेंद्र द्विवेदी