मधुका लोगिफोलिया जिसे आमतौर पर बटर नट के पेड़ के रूप में जाना जाता है, यह प्रायद्वीपीय भारत, श्रीलंका, बर्मा और नेपाल के उत्तरी, मध्य और दक्षिणी भाग में वितरित बड़े आकार का पर्णपाती पेड़ है। यह एक बहुउद्देशीय उष्णकटिबंधीय वृक्ष है जो मुख्य रूप से जंगलो में अपने खाद्य फूलों और तेल के बीजों के लिए उगाया जाता है।
पौधे के लोकप्रिय सामान्य नामों में से कुछ हैं बटर ट्री, बेसिया, बटर-नट ट्री, इलिप नट इंडियन बटर ट्री, इंडियन इलिप बटर, इलुपी, इप्पे, मबुआ बटर ट्री, मोआट्री, मोहा ट्री, मोहा वुड, मावरा बटर ट्री महुआ और मूरत। एक तेजी से बढ़ने वाला पेड़ है जो लगभग 20 मीटर ऊंचाई तक बढ़ता है। यह भारत में मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, केरल, गुजरात और उड़ीसा के मिश्रित पर्णपाती वनों में मुख्य रूप से पाया जाता है। इसकी फूल, फल और पत्तियां खाने योग्य हैं और भारत और अन्य दक्षिणी एशियाई देशों में सब्जियों के रूप में उपयोग की जाती हैं। यह मीठा, मांसलयुक्त, फूल ताजे या सूखे, और आटे के साथ पकाया जाता है, जिसका उपयोग शराब बनाने के लिए स्वीटनर या किण्वित के रूप में किया जाता है। फल के मांसल बाहरी कोट का उपयोग सब्जी के रूप में किया जाता है। देश में इस समय प्रति वर्ष 45000 मीट्रिक टन महुए का उत्पादन होता है। ऐसा कहा जाता है - भारत में, कमी के समय अनाज के के स्थान पर महुआ के फूलों और नमकीन बीजों के संयोजन को उबाल कर उपयोग किया गया था। एक महत्वपूर्ण तेल संयंत्र माना जाता है जिसके बीजों की पैदावार 35 से 47 प्रतिशत के बीच होती है।
उमरिया जिले के वनांचल क्षेत्र में महुआ के पेड़ को महुआदेव का दर्जा प्राप्त है। वन क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी समाज सहित अन्य समाजों में महुआ का उपयोग खाद्य एवं पेय पदार्थ के रूप में कालांतर से होता आ रहा है। वन क्षेत्रों में अनाज का अधिक उत्पादन नही होने के कारण लोग महुआ के विभिन्न व्यंजन बनाकर खाद्य पदार्थ के रूप में उपयोग करते रहे है। इसके साथ ही महुआ के फूल एवं महुआ के फल डोरी का संकलन कर परिवार संचालन हेतु अन्य आवश्यकताओ की पूर्ति बेचकर करते चले आ रहे है। वनवासी जन जीवन में महुआ का सामाजिक एवं आर्थिक रूप से अत्याधिक महत्व रहा है।
महुआ का उपयोग विभिन्न रूपों में किया जाता रहा है। महुआ के फूल को उबालकर खाया जाता है, जिसे स्थानीय भाषा में डोभरी कहते है। महुआ के फूल को कूटकर तिल एवं अलसी के साथ मिलाकर लड्डू बनाए जाते है, जिन्हें स्थानीय भाषा में लाटा के नाम से जानते है। यह लाटा लंबे समय तक सुरक्षित एवं संरक्षित रहता है। महुआ को उबालकर उसका रस निकालकर आटे के साथ मिलाकर पूडि़या बनाई जाती है, जिसे मौहरी कहते है। कुछ समय पूर्व तक वनवासियों द्वारा महुए को उबालकर उसका रस छानकर खीर आदि को मीठा करनें के लिए उपयोग किया जाता रहा है। इसके साथ ही महुए का उपयोग लीकर बनानें में होता है। विषय विशेषज्ञों का मानना है कि महुए के रस में शुगर फ्री का गुण पाया जाता है। आज जब जैविक उत्पादों के उपयोग का प्रचलन बढ़ा है तब महुए का फूल स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यंत उपयोगी है।
महुआ में मिनरल, कार्बोहाईड्रेट, एन्टी फंगल, एन्टी आक्सीडेंट बढाने, एन्टी कैंसर, शुगर नियंत्रक, कैल्शियम आदि प्रचूर मात्रा में पाए जाते है। महुआ के इन गुणों के कारण महुआ का उपयोग करने वाले लोगों में कुपोषण की शिकायत नही पाई जाती थी। आयरन की मात्रा अधिक मात्रा में मिलने के कारण गर्भवती माताओं एवं शिशुओं के लिए महुआ अत्यंत उपयोगी साबित होता था। कालांतर में महुए का उपयोग लीकर के रूप में अधिक होने के कारण नशाबंदी जन जागरूकता का प्रभाव वनवासी समाज में देखने को मिला। धीरे धीरे इस समाज में महुआ का उपयोग कम होने लगा। जिसकी वजह से कुपोषण की समस्यां बढने लगी। धार्मिक रूप से भी महुए का अत्याधिक महत्व है। हल षष्टमी (बलराम जयंती) के अवसर पर हिंदू समाज में महिलाएं अपनी संतान की सुख के लिए व्रत रखती है, तथा महुआ से बनाए जाने वाले विभिन्न व्यंजनों का फलाहार करती है।
उमरिया जिला वनाच्छदित है। यहां महुआ के पेड़ बहुतायत मे पाए जाते है। उमरिया वन मण्डल तथा बांधवगढ़ टाईगर रिजर्व को मिलाकर महुआ के पेड़ों की संख्या एक लाख के करीब है। महुआ का पेड़ वर्ष में एक बार फरवरी,मार्च (होली के त्यौहार के आस पास) फूल देता है। एक पेड़ से लगभग 50 किलो ग्राम तक फूल मिलते है। प्रदेश सरकार द्वारा वनोपज संग्रहण का अधिकार वनवासियों को दिया गया है, जिसमें महुआ के फूल का संग्रहण भी शामिल है। महुआ के फूल की समर्थन मूल्य पर शासन द्वारा वन विभाग के माध्यम से खरीदी भी की जाती है। जिसका मूल्य 3500 रूपये प्रति क्विटल निर्धारित किया गया है। उमरिया जिले में 10 हजार क्विटल महुआ फूल का संग्रहण किया जाता है। यह महुआ का फूल संग्राहक वन विभाग के उपार्जन केंन्द्रों या निर्धारित दर से अधिक कीमत मिलने पर सीधे बाजार में बेचते है। साथ ही वर्ष भर के लिए अपने उपयोग के लिए संरक्षित कर लेते है।
महुआ के झाड़ से फूल गिरने के बाद फल आना शुरू होता है। जिसे स्थानीय भाषा में डोरी कहते है। महुए की डोरी का तेल निकालकर वनवासी समाज भोज पदार्थ के रूप में उपयोग करता है। इसके साथ ही डालडा बनानें तथा साबुन बनानें में भी उपयोग किया जाता है। खली का उपयोग पालतू पशुओं के पौष्टिक आहार के रूप में किया जाता है। महुआ के पत्तों से दोना पत्तल तैयार किए जाते है जिसका उपयोग भोजन की थाली के रूप में किया जाता है। महुआ की लकडी अत्यंत कठोर होती है जिसके कारण उसका उपयोग इमारती लकडी के रूप में नही होता है। पूर्व में जब ग्रामीण क्षेत्रों में छप्पर वाले घर बनाए जाते थे तब महुआ की डाली एवं तनें का उपयोग छप्पर रखनें तथा दरवाजा खिड़की आदि बनानें में होता था। वर्तमान में इमारती लकडी के रूप में उपयोग नही होने से महुआ का पेड़ संरक्षित हो गये है।
महुआ के फूल में पाए जाने वाले पोषक तत्वों के कारण यह एक अत्यंत जैविक भोज पदार्थ है। प्रदेश सरकार द्वारा एक जिला एक उत्पाद कार्यक्रम के तहत स्थानीय उत्पाद को ब्राण्ड प्रदान कर मूल्य संवर्धन की नीति क्रियान्वित की जा रही है। जिला प्रशासन उमरिया द्वारा महुआ उत्पाद को चयनित किया गया है। जिले में महुआ उत्पाद से बनने वाले भोज पदार्थो को बाजार के मांग के अनुसार परिवर्तित कर मूल्य संवर्धन तथा कुपोषण के निदान के लिए तैयार किया जा रहा है। जिले में सपूत के के मेमोरियल समिति शाहपुर पाली को इस कार्य का दायित्व सौंपा गया है।
विषय विशेषज्ञ नीलम कुमारी द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका मिशन के तहत गठित स्व सहायता समूह की महिलाओं को नई रेसिपी के साथ व्यंजन तैयार करनें का प्रशिक्षणदिया जा रहा है। वर्तमान में महुए के फूल से तैयार लड्डू, केक, शिरफ, चिक्की, जैली, ब्रेकरी आदि तैयार करने का प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया है। महुआ महिलाओ एवं बच्चों के कुपोषण से मुक्ति दिलाने में उपयोगी होने के कारण आंगनबाडी केन्द्रों में रेडी टू ईट भोजन के तहत बच्चों को वितरित करने की योजना अमल मे लाई जा रही है। जिले में विश्व प्रसिद्ध बांधवगढ टाईगर रिजर्व है, जहां वर्ष भर देश विदेश के वन्य प्राणी प्रेमी पर्यटन के लिए आते है। महुए से बने उत्पाद के मूल्य संवर्धन के लिए स्व सहायता समूहों की महिलाओं से भोज सामग्री तैयार कर उन्हीं के माध्यम से विक्रय हेतु उपलब्ध कराई जाएगी, जिससे उन्हें महुआ उत्पाद के अच्छे दाम मिलेगें।
महुआ में पाए जाने वाले पोषक तत्व
क्रमांक |
कंटेन्टस |
महुआ फूल प्रतिशत |
1 |
मास्चर का प्रतिशत |
19.8 |
2 |
प्रोटीन |
6.3 |
3 |
फैट |
0.5 |
4 |
शुगर कम करने का प्रतिशत |
50.62 |
5 |
टोटल इन्वर्टस |
54.24 |
6 |
केन शुगर |
3.43
|
7 |
कुल शुगर |
54.06 |
8 |
एैश |
4.36
|
9 |
कैल्शियम |
8 |
10 |
फास्फोरस |
2 |
सोर्स कुरील आर एस सीटी 2009
महुआ फल मे पाए जाने वाले तत्व
क्रमांक |
गुण |
वैल्यू |
1 |
Refractive index |
1.452.1.462 |
2 |
Saponification value |
187.197 |
3 |
Iodine value |
55.70 |
4 |
Unsaponifiable matter (%) |
1.3
|
5 |
Palmitic C16:0 (%) |
24.5 |
6 |
Stearic Acid C18:0 (% |
22.7 |
7 |
Oleic Acid C C18:0 (%) |
37.0 |
8 |
Linolic Acid C18:2 (% |
14.3 |
Source: Kureel R.S et.al, 2009
महुआ पेन रिलीफ आयल
महुए में बहुत अच्छे मात्रा में नेचरल पेनिसिलिन और मॉर्फिन पाया जाता है। पेनिसिलिन और मॉर्फिन केमिकल पेन रिलीवर उत्पादों में मुख्यतः उपयोग में लिया जाता है। अतः हम महुए को आयुर्वेदिक पाकशास्त्र विधि से पका कर अन्य बहुत सी चीजो के साथ संतुलित मात्रा में मिला कर बड़ी सरलता एक बहुत अच्छा औषदि बना सकते है।
महुए से सेनेटाईजर बनाना
कुछ विशेष रासायनिक विधि जैसे वाष्पीकरण या किण्वीकरण का प्रयोग करके महए से 80 - 90 प्रतिशत एथिल अल्कोहल संश्लेषित किया जा सकता है और हैंड सैनेटिजेर में एथिल अल्कोहल एक महत्व पूर्ण घटक है। उद्योग में सेनेटाईजर मुख्यतः एथिल एलकोहल से बनाया जाता है,। महुआ एथिल अलकोहल का बहुत अच्छा स्त्रोत हो सकता है क्यूंकि कुछ विशेष विधियों से हम महुए से 80 -90 प्रतिशत एथिल अलकोहल निकाल सकते है।
महुए से साबुन बनाना
औधोगिक स्तर पर साबुन बनाने में वासा कास्टिक सोडा, कास्टिक पोटाश एवं अन्य सह उत्पादों का इस्तेमाल किया जाता है। महुआ से प्राप्त तेल, त्वचा के लिए बहुत फायदेमंद होता है, जिससे हम वासा की आवश्यतकता पूरा करने के लिए महुए के तेल का इस्तेमाल कर सकते है अतः महुआ तेल से साबुन बना कर हम आमदनी का एक और स्त्रोत उत्पन्न कर सकते है। जिसकी मार्केट डिमांड भी अधिक है क्योंकि लोग अब केमिकल प्रोडक्ट के स्थान पर आर्गेनिक प्राकृतिक उत्पादों के उपयोग की तरफ जा रहे है।
महुए से कैण्डी बनाना
महुए से हम बहुत स्वादिस्ट कैंडी, जैम, जेली बना सकते है क्यूंकि महुए में पैकेटीने उपस्थित होता जिससे हम बड़ी सरलता से कैंडी जैसे उत्पाद बना सकते है। महुए का फल बहुत स्वादिस्ट होता है और सेहत के लिए भी बहुत अच्छा माना जाता है, महुए में आयरन होता है जिससे ये हीमोग्लोबिन का बहुत अच्छा सोर्स होता है इससे बनने वाली कैंडी एनेर्जीबार के रूप में उपयोग कर सकते है।
बनाने की विधि
महुए के पके हुए फल का पल्प लें, शहद चीनी मिलाएँ और चीनी घुलने तक पकाएँ। जेलाटीन और नीबु रस मिलकर थोड़ी देर पकाये अपने हिसाब से कलर और फ्लेवर ऐड करे डीप फ्रिजेर में जमने के लिए छोड़ दे इसके बाद मनचाहे शेप में पैकेजिंग करे।
सावधानियां
संभव हो तो सरे काम से पूर्व विशेषज्ञों की राय जरूर ले। सामग्री की मात्रा स्वेच्छानुसार कम या ज्यादा कर सकते है। महुए का फल हीमोग्लोबिन बढ़ने में बहुत फायदेमंद होता है इसलिए हम इससे बनने वाले कैंडी, जेली को एनेर्जीबार कह सकते है।
बाजार में अच्छी कीमत एवं बहुतायत मांग
औद्योगिक दृस्टि से महुआ आय का एक बहुत अच्छा स्त्रोत है अगर इसमें आधुनिक तरीके से काम किया जाए तो इससे ग्रामीण, कुटीर और लघु उद्योग भी बहुतायत लाभ कमा सकते है। गाँव में महुआ आसानी से उपलब्ध हो जाता है परन्तु सही जानकारी व सही प्रशिक्षण न होने के कारण ग्रामीण कुटीर और लघु उद्योग इससे उचित लाभ नहीं ले पाते हैं। महुआ का सही प्रशिक्षण पा कर व महुआ से बनने वाले खाद्य सामग्री व अन्य चीजों ( जैसे की - जैम, साबुन, एनर्जी ड्रिक, कैंडी, टूथपेस्ट, इन्सेक्टिसाइड, पेनकिलर-पेस्ट इत्यादि ) की जानकारी पा कर वो काम लागत में अधिक मुनाफा कमा सकते है।
नॉवल कोरोना वायरस के कारण अब तो शहरों में भी लोगो का स्वदेशी उत्पाद व ऑर्गेनिक चीजो की तरफ रुझान बढ़ रहा है जिससे इनकी मांग भी बढ़ रही है। महुए के वृक्ष के सभी भागो का उपयोग किया जाता है इस वजह से महुए को ट्री आफ मनी भी कहा जाता है।
गजेंद्र द्विवेदी
जनसंपर्क अधिकारी
जिला उमरिया मध्य्रपदेश
मोबाइल नंबर - 9424684080, 9131257762